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| August 19, 2022

कंवर्टेबल वर्सेज नॉन कंवर्टेबल डिबेंचरः क्या है इनमें अंतर

आपने डिबेंचर के बारे में सुना तो होगा। इन्हें ऋण पत्र भी कहा जाता है। कई लोगों के मन में यह सवाल बार बार आता है कि आखिर ये डिबेंचर होते क्या हैं, कितने प्रकार के होते हैं, इनमें क्या समानता या क्या अंतर होता है। यहां हम उसके बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं। डिबेंचर या ऋण पत्र ऋण लेने का एक दीर्घकालीन तरीका होता है। इसमें किसी तरह की कोई संपत्ति जुड़ी नहीं होती हैं। यह एक आम प्रकार की ऋण प्रतिभूतियों में से एक होता है। डिबेंचर कॉरपोरेशन की ओर से जारी किया जाता है, कुछ मामलों में सरकार पैसा एकत्रित करने के लिए इसका प्रयोग करती है। यह एक सामान्य प्रकार के वित्तीय साधन होते हैं गैर परिवर्तनीय बांड की तरह काम करते हैं। ऐसे में इनका प्रयोग बहुत ही आम और सहज माना जाता है।

कंवर्टेबल डिबेंचर

कंवर्टेबल या परिवर्तनीय डिबेंचर एक कॉरपोरेशन की ओर से जारी किया जाता है, यह लंबे समय के लिए होता है, इसे एक तय समय के बाद शेयर में परिवर्तित किया जा सकता है। आम तौर पर यह कहा जाता है कंवर्टेबल डिबेंचर को असुरक्षित बांड कहा जाता है, इसमें ऋण के लिए अंतरनिहित किसी तरह की सुरक्षा का कोई भाव नहीं होता है।

इन डिबेंचर्स को दीर्घकालिक ऋण प्रतिभूतियां कहा जाता है, यह बांड धारकों को ब्याज का भुगतान भी करती हैं, और एक तय समय सीमा के बाद राशि का भुगतान भी। इनकी सबसे खास बात यह होती है कि कंवर्टेबल डिबेंचर को एक समय के बाद शेयरों के लेन देन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। एक बांड धारक के मन में सुरक्षा की भावना पैदा करना निवेश में उसके जोखिम को सीधे तौर पर कम करता है।

नॉन कंवर्टेबल या गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर

इन्हें शॉर्ट फॉर्म में एनसीडी भी कहते हैं। कंवर्टेबल डिबेंचर की तुलना में एनसीडी में ब्याज दर अधिक होती है। इन्हें एक तय आय देने वाले बांड के रूप में पहचाना जाता है। यह लंबी अवधि के बांड होते हैं। इसके साथ ही इन्हें हाई रेटेड कंपनियों की ओर से सार्वजनिक रूप से जारी किया जाता है।

 

इन्हें शॉर्ट फॉर्म में एनसीडी भी कहते हैं। कंवर्टेबल डिबेंचर की तुलना में एनसीडी में ब्याज दर अधिक होती है। इन्हें एक तय आय देने वाले बांड के रूप में पहचाना जाता है। यह लंबी अवधि के बांड होते हैं। इसके साथ ही इन्हें हाई रेटेड कंपनियों की ओर से सार्वजनिक रूप से जारी किया जाता है।

एनसीडी शेयर बाजार या इक्विटी से संबंधित हैं। एनसीडी की एक निर्धारित परिपक्वता तिथि होती है, और ब्याज का भुगतान मासिक, त्रैमासिक या वार्षिक रूप से किया जा सकता है, जो चुनी गई निश्चित अवधि पर निर्भर करता है। परिवर्तनीय डिबेंचर की तुलना में, वे निवेशकों को बेहतर प्रतिफल, तरलता, न्यूनतम जोखिम और कर लाभ प्रदान करते हैं।

विभिन्न मापदंडों पर परिवर्तनीय और गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर के बीच अंतर निम्नलिखित हैं:

आधार कंवर्टेबल डिबेंचर नॉन कंवर्टेबल डिबेंचर
मैच्योरिटी पर मूल्य कंवर्टेबल डिबेंचर का परिपक्वता मूल्य कंपनी के मौजूदा स्टॉक मूल्य द्वारा तय किया जाता है, जिसका अर्थ है कि उच्च स्टॉक मूल्य के परिणामस्वरूप उच्च रिटर्न होगा, जबकि कम नॉन-कंवर्टेबल डिबेंचर का एक निश्चित मूल्य होता है और इसलिए परिपक्व होने पर निश्चित रिटर्न अर्जित करते हैं।
ब्याज दर कंवर्टेबल डिबेंचर में गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर की तुलना में कम ब्याज दर होती है क्योंकि धारक उन्हें इक्विटी शेयरों में परिवर्तित कर सकते हैं। एनसीडी पर ब्याज दर अधिक है। हालाँकि, इन डिबेंचर को कंवर्टेबल डिबेंचर और बॉन्ड की तुलना में कम खतरनाक माना जाता है।
स्टेटस यह कंवर्टेबल और नॉन-कंवर्टेबल डिबेंचर के बीच महत्वपूर्ण अंतरों में से एक है। परिवर्तनीय डिबेंचर के धारकों की दोहरी स्थिति होती है क्योंकि वे लेनदार और फर्म के मालिक दोनों हो सकते हैं। दूसरी ओर नॉन-कंवर्टेबल डिबेंचर के धारक कंपनी के एकमात्र लेनदार हैं।

एनसीडी दो तरह की होती हैंः

  • सिक्योर एनसीडीः

    सिक्योर एनसीडी डिबेंचर का सबसे सुरक्षित प्रकार माना जाता है। सुरक्षित इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये डिबेंचर कंपनी की संपत्ति से जुड़े होते हैं। ऐसे में यदि कंपनी धारकों को भुगतान करने में विफल हो जाती है तो निवेशक कंपनी की संपत्ति से वसूली करते हैं। अपने नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। इनकी ब्याज दर कम होती है।

  • अनसिक्योर एनसीडीः

    असुरक्षित एनसीडी में सुरक्षित एनसीडी की तुलना में जोखिम अधिक होता है। इसका कारण यही होता है कि उनमें कंपनी की किसी संपत्ति का कोई लेना देना नहीं होता है। नतीजतन, अगर फर्म भुगतान करने में विफल रहता है, तो निवेशकों के पास भुगतान होने तक इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है क्योंकि कंपनी के पास अपने नुकसान की वसूली के लिए कोई संपत्ति नहीं है। दूसरी ओर असुरक्षित एनसीडी की ब्याज दर सुरक्षित एनसीडी की तुलना में अधिक होती है।

एनसीडी की प्रमुख विशेषताएं:

  • ब्याज की दर:

    एनसीडी की ब्याज दरें निश्चित रहती हैं। ये ब्याज दर कंपनी की विश्वसनीयता के विपरीत काम करती है। जहां तक बात एफडी की है, एनसीडी का रिटर्न अधिक होता है। समयावधि के मामले में भी एनसीडी में फ्लेक्सिबिलिटी अधिक होती है।

  • लिक्विडिटी:

    आमतौर पर माना जाता है कि लिक्विडिटी यानी तरल या पैसा होना अच्छा रहता है। इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। इसके लिए एनसीडी एक बेहतर विकल्प है। इमरजेंसी के समय में इसे आसानी से भुनाया जा सकता है। एक्सचेंज में लिस्टेड होने के कारण ये आसानी से बदले जा सकते हैं और जरूरतें पूरी की जा सकती है। इन्हें लेकर बाजार में कोई भी कभी भी खरीद या बिक्री कर सकता है, इन्हें खरीदना बेचना आसान होता है।

  • रिटर्न रेट्स:

    हर एनसीडी को रिटर्न करने के दो रास्ते होते हैं। एक तो ग्रोथ और इंटरेस्ट औऱ दूसरा है कम्युलेटिव ऑपरच्युनिटीज। अनसिक्योर एनसीडी की ब्याज दर सिक्योर एनसीडी की तुलना में कम हो सकती है, क्योंकि ये एनसीडी कंपनी की सम्पत्तियों के आधार पर सुरक्षित मानी जाती हैं।

एनसीडी में इन्वेस्ट करते समय कुछ अहम बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

  • क्रेडिट रेटिंग:

    आप किस कंपनी में इनवेस्ट करने जा रहे हैं यह सबसे अहम होता है। इस लिए कंपनी की क्रेडिट रेटिंग पर ध्यान दिया जाना चाहिए। क्रेडिट रेटिंग किसी कंपनी की स्थिति को बताती है। यह दर्शाता है कि कंपनी अपने आंतरिक या बाह्य सोर्सेज से कितना केश एकत्रित कर सकती है। यह कंपनी के लंबे समय तक टिके रहने की क्षमता को भी बताती है। चूंकि एनसीडी में कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है, रिटर्न पूरी तरह कंपनी की परफोर्मेंस पर ही निर्भर करता है तो ऐसे में जरूरी हो जाता है कि निवेश करते समय हम ध्यान रखें कि निवेश अच्छी क्रेडिट रैकिंग वाली कंपनी में ही करें।

  • इंटरेस्ट कवरेज रेशो:

    इंटरेस्ट कवरेज रेशो बताता है कि कंपनी अपनी कमाई से ब्याज का भुगतान कितनी बार करती है। यदि यह अधिक होता है तो इसका मतलब है कि कंपनी अपने दायित्वों को अच्छी तरह से निभा रही है। वह अपने कामों को पूरा कर सकता है। अधिक ब्याज यानी अधिक फायदा। ऐसी कंपनियों को लेकर निवेश के बारे में सोचा जा सकता है।

  • नॉन परफोर्मिंग असेट्स:

    इस बात भी नजर रखें कि जिस कंपनी में आप निवेश करने की सोच रहे हैं क्या वह फर्म नियमित तौर पर अपनी गैर निष्पादित परिसंपत्तियों के लिए प्रावधान आवंटित करती है। गैर निष्पादित परिसंपत्ति यानी वह ऋण जिसके लौटने की उम्मीद बैंक को कम रहती है। इससे कंपनी की पर्याप्त आय के बारे में भी पता चलता है।

यहां यह बताना बेहद जरूरी हो जाता है कि एक निवेशक यदि किसी कंपनी के एनसीडी में निवेश करता है तो उसे मिलने वाला रिटर्न वास्तविक ब्याज पर ही निर्भर नहीं करता है। कंपनी की आर्थिक स्थिति भी इसमें अपनी अहम भूमिका निभाती है। कंपनी किए गए निवेश की मैच्योरिटी डेट पर भुगतान करने की स्थिति में है भी या नहीं, यह भी अहम सवाल बन जाता है। ऐसे में कंपनी की वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन करना जरूरी होता है।

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एनसीजी शेयर बाजार या इक्विटी में होती है। एनसीडी की एक मैच्योरिटी डेट होती है, इसके ब्याज का भुगतान मासिक, त्रैमासिक या वार्षिक रूप से किया जाता है। यह बांड धारक के चयन पर आधारित होता है कि यह अवधि क्या रहेगी। कंवर्टेबल डिबेंचर की तुलना में नॉन कंवर्टेबल डिबेंचर निवेशकों को अच्छे परिणाम देते हैं। ये कम जोखिम और लिक्विडिटी और टैक्स एडवांटेज भी प्रदान करते हैं।

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